Whenever I think of my independent country, India, I never remember an incident in which our army has unloaded the tank at the behest of the government and brutally suppressed thousands of exhibitors. But this is the misfortune of this country, which has to bear the blame of cruelty on itself, on the army. Today, many people of our country who talk about losing to China in war, create fear in everyone's mind that the way China occupied 43000 sq km of Indian land in 1965 war, it Can still do this. Here people do not praise the victory story of China, but they want to elevate their head by lowering India. But we all forget the China massacre that took place on June 4, 1989 in Tianmen Square, Beijing. Where 3 lakh Chinese soldiers massacred the movement of 3 to 10 thousand students. China still hides this cruelty from the world. It even enacted a rule in 2018 where the government prohibited the exchange of 89.64 or 64.89 yuan. And all this was done so that the massacre would never be remembered. But on 4 June every year, the people of Hong Kong go to Kureed after performing this wound.
This incident may not matter to many people, perhaps many people feel bad knowing this. And there is also a new interest in knowing why this incident happened. Because these people feel the generosity of their country and they consider a country like China a patron of generosity. But I will tell you this incident.
In the 80s, the people of China started moving forward in the desire of their democracy country. He felt that even a communist country like China can take the form of democracy. And with this thinking, the people there started a movement against the government. In 1989, the Supreme Commander of the Chinese Army was Dong Jiawoping, who did not like the voice of the agitator. He was a party in China and a supporter of the Communist Party. At that time, I was Yau Bang, the general secretary of the Communist Party of China. Who was a supporter of democracy in China, who died on 15 April 1989 due to heart disease. And the incident of this death was considered by the protesters as a deep move of the government and they felt that the Chinese government was responsible for this death. The agitators intensified their agitation after this incident. The special thing about this movement is that a large amount of Chinese students participated in it. Due to which the Chinese government started martial law on 20 May 1989 and arrested the agitators and started putting them in jail, against which the agitation intensified. And a crowd of about 1 million people gathered in Tianmen Square Beijing, 500 square meters, from 2 to 3 June 1989 against the government. This movement was suppressed by 3 lakh soldiers of the army by massacring 3 to 10 thousands of people, which China never talks about.
Any history like the above incident appears in independent India after the British rule in India. Then some of the people of our country who support the communist government, see the generosity in the government of China, they call the government, army, country good. China is called tolerance and India is a government with intelligence. Perhaps he imagines such a liberal government and society where people are left as slaves in front of a society and government with some kind of idea.
Will such people ever want to see their country, army, government and remove their hate glasses, I leave this question on those people.
Thank you .
हिंदी अनुवाद--
जब भी मै अपने स्वतंत्र देश भारत के बारे में सोचता हूं, तो कभी भी ऐसी घटना याद नहीं आती, जिसमें हमारी सेना ने सरकार के इशारे पे रोड पर टैंक उतार दिया हो और हजारों प्रदर्शंकारियो का क्रूरता से दमन कर दिया हो। पर ये इस देश का दुर्भाग्य ही है , जिसको अपने ऊपर , सेना के ऊपर क्रूरता का इल्ज़ाम सहना पड़ता है । आज हमारे ही देश के कई लोग जो युद्ध में चीन से हार जाने की बात करते है , सबके मन में ये डर पैदा करते है, कि जिस तरह चाइना ने 1965 के युद्ध में 43000वर्ग किमी के भारत की जमीन पर कब्जा कर लिया था , वो अब भी ऐसा कर सकता है । यहां लोग चीन की विजय गाथा का गुणगान नहीं करते बल्कि वे लोग भारत को नीचा दिखाकर अपना सर ऊंचा करना चाहते है। पर हम सब चाइना के उस नरसंहार को भूल जाते है जो 4 जून 1989 को तियनमेन स्क्वायर बीजिंग में हुआ था। जहां 3 लाख चीन के सैनिकों ने 3 से 10 हजार छात्रों के आंदोलन का नरसंहार कर दमन किया था। चीन अपनी इस क्रूरता को दुनिया से आज भी छुपता है। यहां तक कि उसने 2018 में ऐसा नियम भी बनाया जिसमें सरकार 89.64 या 64.89 युआन कि राशि के आदान प्रदान पर रोक लगा दी थी। और ये सब इसलिए किया गया कि इस नरसंहार की याद भी कभी ना रहे। पर इस घाव को हरेक साल 4 जून को हांकोंग के लोग प्रदर्शन कर के कुरेद जाते है।
यह घटना शायद बहुत सब लोगो के लिए कोई मायने नहीं रखती हो, शायद बहुत से लोग को ये बात जान कर भी बुरी लगे। और ये जानने में भी कोई रुचि नई रखते की ये घटना क्यों हुई कैसे हुई होगी ? क्यों कि इन लोगो को अपनी देश की उदारता जकड़न लगती है और चीन जैसे देश को ये लोग उदारता का संरक्षक मानते है। पर मै इस घटना को आप को बताऊंगा ।
80 के दशक में चीन के लोग अपने लोकतंत्र देश की कामना में अग्रसर होने लगे। उन्हें लगा कि चीन जैसा कम्युनिस्ट देश भी लोकतंत्र का रूप ले सकता है । और इस सोच के साथ वहां की जनता ने सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया था । 1989 के समय में चीनी सेना के सुप्रीम कमांडर ड एंग जियावोपिंग थे, जिन्हें आंदोलनकारी की आवाज पसंद नहीं थी। वे चीन मे एक दलीय और कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थक थे। पर उस समय चीन के कम्युनिस्ट पार्टी के जनरल सेक्रेटरी हूं याऊ बंग थे । जो चीन में लोकतंत्र के समर्थक थे, जिनका दिल के बीमारी के कारण 15 अप्रैल 1989 को निधन हो गया। और इस मौत की घटना को प्रदर्शनकारियों ने सरकार की गहरी चाल समझी और उन्हें लगा कि इस मौत का जिम्मेदार चीन की सरकार है। इस घटना के बाद आंदोलनकारियों ने आपना आंदोलन तेज कर दिया। इस आंदोलन कि खास बात ये रही कि इसमें में बड़ी मात्रा में चीन के छात्रों ने भाग लिया। जिसके कारण चीन कि सरकार ने 20 मई 1989 को मार्शल लॉ शुरू कर दिया और आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर जेल में डालना शुरू कर दिया जिसके विरूद्ध में आंदोलन और तेज़ हुआ। और सरकार के विरूद्ध में 500 वर्ग मीटर वाले तियानमेन स्क्वायर बीजिंग में करीब 10 लाख लोगों की भीड़ 2 से 3 जून 1989 के बीच इकट्ठे हो गई। इस आंदोलन को सेना के 3 लाख जवानों ने 3 से 10 हजारों लोगों का नरसंहार कर आंदोलन का दमन किया।जिसकी चर्चा चीन कभी भी नहीं करता।
उपरोक्त घटना जैसा कोई भी इतिहास भारत में अंग्रेजी शासन के बाद आजाद भारत में दिखाई नई पड़ती है। फिर हमारे देश के लोग के कुछ कम्युनिस्ट सरकार के समर्थन वाले लोगो को चीन की सरकार में उदारता नजर आती है , वे सरकार,सेना, देश को भला बुरा कहते है। चीन को टॉलरेंस और भारत को इंटोलरेंस वाली सरकार कहते है। शायद उन्हें ऐसे उदारवादी वाले सरकार और समाज की कल्पना है जहां लोगो को किसी एक प्रकार के विचार वाले समाज और सरकार के आगे गुलाम बना कर पूरी ज़िन्दगी के लिए छोड़ दी जाए।